गिरता रूपया और बढ़ती मंहगाई, लूटते नागरिक और भरते सरकारी खजाने?
बाजार में जारी वर्तमान पांच रूपये और दस रूपये के सिक्कों को देखें तो मुद्रा का अवमूल्यन समझने में देर नहीं लगेगी। अब जारी नये पांच के सिक्के का वजन तीन साल पहले के पचास पैसे के सिक्के के बराबर है। याने कि आज का पांच रूपये की कीमत पचास पैसे भी नहीं है। साफ है कि हमारे एक रूपये की कीमत दस पैसे से भी कम है। इस अद्योषित अवमूल्यन के कारण ही मंहगाई आसमान छू रही है। जिसे शायद ही किसी विशेषज्ञ ने उजागर किया हो? अब तक अंतराष्ट्रीय बाजारों के नाम पर जनता का ध्यान बांटने के अलावा किसी ने कुछ नहीं किया है। यही नहीं सरकार ने भी खाद्य पदार्थों की फ्यूचर ट्रेडिंग को बाजार में मंहगाई बढ़ाने के लिये ही जारी रखा हुआ है। अगर सरकार खाद्य पदार्थों की वायदा बाजार की गतिविधियों पर रोक लगा देती है तो वर्तमान मंहगाई का असर आधे से भी ज्यादा कम हो सकता है। साथ ही हाजिर बाजार में खाद्य पदार्थों के कारोबार पर निगरानी रख कर और स्टॉक सीमा तैय कर मंहगाई को काबू किया जा सकता है। लेकिन सरकार आम जनता से ज्यादा खुद के खजानों को भरने में लगी है। बाकी बचा है उसे पूजीपति और सट्टेबाज लूटने में लगे हैं। एलपीजी गैस का ही उदाहरण लें तो देखेंगे की सरकार स्वंय कालाबाजारी को बढ़ावा दे रही है। एक और सप्लाई कम की जाती है तो दूसरी और वाहनों में इसके प्रयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है जबकि वाहनों को एलपीजी गैस उपलब्ध करवाने हेतु अभी तक पूरी तरह से धरातल पर एक प्रतिशत भी संसाधान नहीं है। नतीजन बेचारे वाहन चालक रसोई गैस सिलेण्डर को ही तो उपयोग में लेंगे। कामर्शियल और घरेलू गैस के दाम एक समान कर दिये जायें और तत्काल उपलब्ध करवा दी जाये तथा सप्लाई को बढ़ाया जाये तो हमारा मानना है कि सब्सिडी की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि दाम तो घटेंगे। देश में बेहताशा कर्मचारियों के वेतन और भत्तों को बढ़ाया जा रहा है, अगर इसको रोक कर इस पैसे से मंहगाई को काबू में किया जाये तो शायद मंहगाई से कडाई से निपटा जा सकता है। हां आवश्यकता है देश के सभी कर्मचारियों को श्रेणीवार एक समान वेतन भत्ते दिये जायें। चाहे वे तेल कम्पनी के कर्मचारी हो या सैन्य कर्मचारी अथवा राज्य सरकार के कर्मचारी! सभी का श्रेणीवार वेतन तैय कर दिया जाये और उसे बढ़ाया नहीं जाये। इस मद में बचे हुये पैसे से ही मंहगाई से काफी हद तक लड़ा जा सकता है और देश के नागरिकों को राहत पहुंचाई जा सकती है। आवश्यकता है नेताओं की इच्छा शक्ति की। जो शायद कुर्सी के आगे विवश है? कुल मिलाकर सामान्य उपायों और कालाबाजारियों-सट्टेबाजों पर सख्ती व वितरण में सुधार मात्र से ही काफी हद तक मंहगाई पर काबू पाया जा सकता है। नये कर या सरचार्ज आदि लगाने की आवश्यकता भी नहीं पडेगी।