सीआरआर बढ़ाने से बैंकों पर कोई फर्क नहीं होने वाला!
सीआरआर बढ़ाने से बैंको पर कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला है। चाहे वे कितना ही हो हल्ला मचालें। क्योंकि ज्यादातर निजी बैंक उद्योग समूहों से जुड़े हुये हैं और वर्तमान समय में ये बैंक केवल बड़े लोन ही दे रहे हैं। आम जनता को तो वैसे भी ये बैंक लोन नहीं देते ऐसी स्थिति में इनके पास भरपुर मात्रा में धन उपलब्ध है और उद्योगपति घराने इस पैसे से ही बाजारों में अस्थिरता पैदा कर रहे हैं। इसही का नतीजा है मंहगाई! कुछ बैंक और बडे आपरेटरों के हो हल्ला मचा कर स्टॉक मार्केट में उठापटक करने की पूरी योजनाबद्ध साजिश मात्र है। सीआरआर बढ़ाने से सरकारी बैंकों को भी कोई खास फर्क नहीं पडऩे वाला और सरकारी बैंकों ने इस पर कोई खास टिप्पणी भी नहीं की है। साफ है स्टॉक मार्केट और कुछ कालाबाजारिये सलाहकारों को प्रायोजित कर इस तरह की अफवाह फैला रहे हैं ताकि आम निवेशक बाजारों से दूर ही रहें। यह उठापटक भारत के बडे आपरेटरों द्वारा की जा रही है और इनमें से अधिकतर एफआईआई के तौर पर काम रहे हैं। यह आपरेटर एफआईआई के तौर पर पैसा बाहर ले जा रहे हैं और भारतीय नागरिक बात कर वापस इसे विदेशी मुद्रा के नाम पर भारत में लाते हैं और भारी टैक्स चोरी कर रहे हैं। नुकसान छोटे निवेशकों, सरकार और आज जनता को भुगतना पड़ रहा है। यही कारण है कि अमेरीका के राष्ट्रपति को अमेरीका के बैंकों को चेतावनी देनी पड़ी क्योंकि वे इस गलत तरीके से हो रहे लेन-देन के हो रही परेशानी को समझ रहे हैं। लेकिन भारत में तो राजनेता और पूंजीपतियों की सांठगांठ के चलते इसे बढ़ावा मिल रहा है। यही कारण है कि कोई भी एफआईआई के निवेश सम्बन्धी जानकारी आम जनता को उपलब्ध नहीं करवा रहा है। लेकिन आम जनता की जानकारी सभी सरकारी विभागों को उपलब्ध करवाई जा रही है जैसे आयकर विभाग आदि! जाहिर है बड़े आपरेटर एफआईआई बन कर जो खेल खेल रहे हैं उसे इस देश के राजनेता उजागर नहीं करना चाहते और ना ही सरकारी अमला इसे उजागर करना चाहता है? आखिर आर्थिक हित जो सबके जुड़े हैं, जनता जाये भाड़ में! खैर कुल मिलाकर हमारा मानना है कि सीआरआर के नाम पर हो रहा हो हल्ला केवल हो हल्ला ही है बैंक उद्योग में पैसे की कोई कमी नहीं है। इस लिये ये हो हल्ला मात्र धोखा ही है और आम जनता सावधान रहे।